इस साल का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार अमरीका की अर्थ शास्त्री ,एलिनोर ओस्ट्रॉम को उन्हीं के देश के ओलिवर विलियम्सन के साथ साझा रूप में दिया गया है .अर्थ शास्त्र का नोबेल पहली बार एक महिला को दिया गया है .दोनों अर्थशास्त्रियों को आर्थिक प्रशासन के क्षेत्र में किए गए योगदान के लिए ये सम्मान दिया जा रहा है. आर्थिक प्रशासन ऐसे नियम-क़ानूनों का क्षेत्र होता है जिनसे व्यक्ति कंपनियों या किसी आर्थिक व्यवस्था को संचालित करते हैं.एलिनोर ओस्ट्रॉम इंडियाना यूनीवर्सिटी और ओलिवर विलियम्सन बर्कले विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं.\इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं में अमरीकी नागरिकों की संख्या बहुत ज्यादा है .इस वर्ष कुल 13 लोगों को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है जिनमें 11 अमरीकी नागरिक हैं. इस साल नोबेल पुरस्कार विजेताओं में महिलाओं की संख्या भी खासी है नोबेल पुरस्कार की समिति के अब तक के इतिहास पर नज़र डालें तो यह एक स्वागत योग्य आश्चर्य ही माना जाएगा. इस साल साहित्य का नोबेल जर्मन-रोमानियन लेखिका हरता म्युल्लर को दिया गया है , अमरीकी नागरिक एलिजाबेथ ब्लैकबर्न और कैरोल ग्रीडर को मेडीसिन का जब कि इस्राइली महिला वैज्ञानिक को रसायन शास्त्र का नोबेल दिया गया. एक साल की नोबेल पुरस्कारों की लिस्ट में इतनी महिलायें एक साथ कभी नहीं रही हैं .
नोबेल पुरस्कारों की स्थापना डायनामाइट के आविष्कारक, स्वीडन के वैज्ञानिक अल्फ़्रेड नोबेल के नाम पर हुई थी.1901 से दिए जा रहे नोबेल पुरस्कार पहले तो पाँच वर्गों में दिए जाते थे मगर 1968 से अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भी नोबेल पुरस्कार दिए जाने लगे. इस साल के अर्थशास्त्र के पुरस्कार की घोषणा करते हुए नोबेल समिति ने प्रोफ़ेसर ओस्ट्रॉम की बहुत तारीफ़ की और कहा कि उन्होंने ये दिखाया कि वनों, और जलस्रोतों जैसी प्राकृतिक और सार्वजनिक संपदाओं की व्यवस्था सरकारों और निजी कंपनियों से बेहतर इनका इस्तेमाल करनेवाले लोग करते हैं.76 वर्षीया एलिनोर ओस्ट्रॉम ने कहा कि पुरस्कार मिलने की खबर सुनकर उन्हें बहुत खुशी हुई है .उन्होंने कहा,"जब उन्होंने मुझे फ़ोन कर बताया तो मैं बिल्कुल चौंक गई. ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने बहुत-बहुत संघर्ष किया है और उनके बीच से पुरस्कार के लिए चुना जाना बहुत बड़े सम्मान की बात है."
हालांकि पश्चिमी देशों में महिलाओं का सम्मान किया जाता है लेकिन अभी पुरुष प्रधान समाज में उनकी स्थिति उतनी मज़बूत नहीं है जितनी कि पुरुषों की है .इसके लिए पूरी दुनिया की तरह ऐतिहासिक कारण ही जिम्मेदार हैं लेकिन जागरूकता की कमी भी महिलाओं की शक्ति को सीमित करने के लिए काफी हद तक जिम्मेवार हैं . प्रोफ़ेसर एलिनोर ओस्ट्रॉम को पुरस्कार देने से महिला सशक्तिकरण की कोशिशों को ताक़त मिलेगी . इसके दो कारण हैं . एक तो किसी महिला को अर्थशास्त्र का सबसे बड़ा सम्मान मिलने के अपने ही प्रेरक रहेंगें और दूसरी तरफ उनको जिस विषय के लिए पुरस्कार दिया गया है वह कम क्रांतिकारी नहीं है .प्रोफ़ेसर एलिनोर ओस्ट्रॉम ने बताया है कि जंगलों और पानी के ठिकानों का इन्तेजाम वही लोग सबसे अच्छा करते हैं जो वास्तव में उसका इस्तेमाल करते हैं . . यानी सरकार या वन सम्पदा का लाभ लेने वाली कंपनियाँ जंगलों का सही देखभाल नहीं कर सकतीं . इस विचार को अगर आगे बढाया जाए और भारत की सरकार इसे ईमानदारी से लागू कर दे तो भारत की बहुत सारी समस्यायें अपने आप ख़त्म हो जाएँगीं. देश के आदिवासी इलाकों में चल रहे माओवादी हमलों के बहुत सारे कारण हैं लेकिन एक यह भी है कि उन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों से वन सम्पदा संबन्धी उनके अधिकारों को सरकारों ने छीन लिया है और राजधानियों में बैठकर बनाए गए कानूनों के ज़रिये जंगलों के मूल निवासियों को केवल मजदूर की औकात पर ला कर रख दिया है . आजकल तो खनिज सम्पदा के चक्कर में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी आदिवासी इलाकों पर काबू करने की जुगाड़ भिड़ा रही हैं . नतीजा यह हो रहा है कि वहां रहने वाले लोग राजनीतिक नेताओं और व्यापारी वर्ग को अपना दुश्मन नंबर एक मानने लगे हैं . ऐसे माहौल में कुछ दिग्भ्रमित वामपंथियों ने उन्हें माओ के नाम पर लामबंद किया और गलत राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उन्हें हथियार पकडा दिए. यह समझ लेना ज़रूरी है कि संशोधनवादी विचारधारा का शिकार कम्युनिस्ट भी पूंजीपति वर्ग के हित में ही काम करता है . देश के आदिवासी इलाकों में चल रहे खूनी संघर्ष के बाद उसके नेतागण तो सरकार से सुलह कर लेंगें लेकिन आदिवासी समाज का जो नुक्सान हो जाएगा उसकी भरपाई असंभव होगी. अगर प्रोफ़ेसर एलिनोर ओस्ट्रॉम की वन सम्पदा के प्रबंधन के अर्थशास्त्रीय सिद्धांत को भारत के आदिवासी इलाकों में लागू कर दिया जाए तो देश और समाज का बहुत ही भला होगा.
आज ही खबर आई है कि पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखण्ड के इलाकों में माओवादियों ने हिंसा का तांडव शुरू करवा दिया है . इन माओवादियों की तरफ से हथियार उठाने वाले और कोई नहीं , भारत के जंगली इलाकों में रहने वाले गरीब लोग हैं अगर नोबेल पुरस्कार की इस साल की विजेता एलिनोर ओस्ट्रॉम के वन सम्पदा के प्रबंधन के सिद्धांत को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लागू करना शुरू कर दें तो समस्या की जड़ तक पंहुचना आसान हो जाएगा. इसका असर सामाजिक व्यवस्था पर भी पड़ेगा . आदिवासी इलाकों में परंपरागत रूप से स्त्री पुरुष में बहुत ज्यादा भेद नहीं होता. इसलिए अगर आदिवासी समाज को उसकी पुश्तैनी संपत्ति के प्रबंधन का अधिकार दिया गया तो जाहिरा तौर पर औरतों को भी अधिकार मिलेगा और जिस समाज में महिलाओं के पास आर्थिक अधिकार होते हैं वह समाज कभी भी पिछड़ नहीं सकता . इस लिहाज़ से कहा जा सकता है कि एलिनोर ओस्ट्रॉम को नोबेल ऐसे वक़्त पर दिया आ है जब कि उनके सिद्धांत को सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है .
इस बीच झारखण्ड सरकार ने बताया है कि राज्य में रहने वाले आदिवासियों पर लगाए गए १ लाख मुक़दमे वापस ले लिए गए हैं . यह संख्या हैरानी में डालने वाली है . एक छोटे से राज्य में १ लाख ऐसे मुक़दमे थे जिन्हें कि वापस लेने लायक माना गया . इसका सीधा मतलब यह है कि आदिवासियों के खिलाफ राज्य सरकार की ताकत का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए किया जा रहा था . मुक़दमे वापस ले कर तो बीमारी के लक्षणों का इलाज़ ही संभव होगा . ज़रुरत इस बात की है कि बीमारी को जड़ से मिटा दिया जाए. और उसके लिए भूमिपुत्रों को उनके अधिकार देना पड़ेगा जिसके लिए दार्शनिक पृष्ठभूमि नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफ़ेसर एलिनोर ओस्ट्रॉम के अर्थ शास्त्र के सिद्धांतों से ली जा सकती है.
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’जल , जंगल , जमीन ’ पर स्थानीय आबादी के हक़ और उनके द्वारा कुशलतम प्रबन्धन की मान्यता के साथ दुनिया भर में जो अहिंसक आन्दोलन चल रहे हैं उन्हें एलिनोर ओस्ट्रॉम को मिले सम्मान से साहस मिलेगा ।
ReplyDeleteकहा जाता है कि जोन रॉबिनसन (जिनकी लिखी किताब और दिए गए सिद्धान्त दशकों से पाठ्य पुस्तक हैं अथवा पाठ्य क्रमों का हिस्सा)को नोबेल न मिलने की वजह उनका महिला होना तथा चीन की प्रशंसा करना थी ।
जानकाीपूर्ण आलेख के लिए शुक्रिया ।