शेष नारायण सिंह
पांच विधान सभाओं के चुनावों के नतीजे एक महीने के अन्दर आ जायेगें . असम, बंगाल , तमिलनाडु और केरल में सत्ताधारी पार्टियों के चुनाव हार जाने की संभावना पर चर्चा शुरू हो गयी है . पश्चिम बंगाल के चुनावों के बारे में लेफ्ट फ्रंट-कांग्रेस जोत के आकार लेने के पहले ममता बनर्जी अजेय मानी जा रही थीं लेकिन अब उनकी कुर्सी भी डगमगा रही है , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान कर दिया है कि जिस तरीके से तीसरे दौर के मतदान के दिन पश्चिम बंगाल के चारों जिलों में हिंसा का आतंक छाया रहा वह इस बात का संकेत है कि दीदी हार मान चुकी हैं .१९ मई के नतीजों में अगर बीजेपी असम में सरकार बना लेती है तो नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ेगी लेकिन अगर नहीं भी बनाती तो भी कोई फर्क नहीं पडेगा क्योंकि २०१६ के विधान सभा चुनाव वाले राज्यों में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है.
लेकिन २०१७ के विधान सभा चुनाव में बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर होगी. पंजाब में उनकी सरकार है जो बहुत ही अलोकप्रिय हो गयी है . बीजेपी के पार्टनर ,अकाली दल वाले चारों तरफ आलोचना के शिकार हो रहे हैं . हालांकि इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनाव के पहले बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व अकाली दल से पल्ला झाड़ने का फैसला ले ले क्योंकि केंद्र की सरकार चलाने के लिए उनको अकाली दल की कोई ज़रुरत नहीं है . चर्चा शुरू हो गयी है कि अगर पंजाब में गठबंधन से अलग हो जाएँ तो प्रकाश सिंह बादल परिवार के भ्रष्टाचार और कथित ड्रग कारोबार के आरोपों से किनारा किया जा सकता है . बहरहाल पंजाब की राजनीति का स्वरुप मौजूदा चुनावों के बाद तय होना शुरू होगा .
२०१७ के विधानसभा चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तरप्रदेश होगा . हालांकि वहां बीजेपी की सरकार नहीं है लेकिन २०१४ के चुनावों में बीजेपी ने ७१ और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने २ सीट जीतकर यह साबित कर दिया था कि उत्तर प्रदेश में वह बहुत मज़बूत है . उस जीत के बाद ,वर्तमान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तरप्रदेश के इंचार्ज के रूप में बहुत नाम कमाया और आज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं . उत्तर प्रदेश में उनकी रूचि होना स्वाभाविक भी है . अभी तक माना जा रहा था कि २०१७ में बीजेपी को राज्य में बड़ी जीत मिलेगी लेकिन अब बीजेपी वाले कहने लगे हैं कि राज्य में समाजवादी पार्टी की तो हार होगी लेकिन सत्ता मायावती के हाथ चली जायेगी . मायावती को अगला मुख्यमंत्री मानने वाले तो समाजवादी पार्टी में भी हैं . नई दिल्ली में पार्टी से जुड़े कई लोगों ने इस बात को बहुत भरोसे के साथ बताया कि उनकी पार्टी हार रही है . यह महत्वपूर्ण संकेत था लेकिन जब उनकी इस भविष्यवाणी को सच्चाई की कसौटी पर जांचा गया तो पता लगा कि उनको गुस्सा अपनी पार्टी से नहीं , उस मुख्यमंत्री से है जो आजकल उन लोगों के धंधे पानी की सिफारिशों को नज़रंदाज़ कर रहा है . लेकिन दिल्ली में रहने वालों को यह अक्सर सुनने को मिल जाता है कि उत्तर प्रदेश में बहन जी की सरकार आ रही है . ज़ाहिर है इन बयानों को ज़मीनी धरातल पर जांच करने की ज़रूरत थी. इसके लिए पिछले एक महीने में इस संवाददाता ने उत्तर प्रदेश की तीन यात्राएं कीं . क्योंकि राजनीति की रिपोर्टिंग करने वाला कोई भी पत्रकार बता देगा कि बिना गावों , शहरों और सडकों पर घूमे बिलकुल अंदाज़ नहीं लगता कि राज्य की राजनीतिक हवा किस तरफ को बह रही है .
उत्तर प्रदेश की इन तीन यात्राओं में एक पूर्वी उत्तर प्रदेश, दूसरी, लखनऊ अगर और तीसरी बुंदेलखंड के सूखा प्रभावित इलाकों की है . बुंदेलखंड में तो राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बातचीत भी हुयी . अखिलेश यादव ने दावा किया कि बुन्देलखंड में उन्होंने विकास को प्राथमिकता बनाया है लेकिन फिलहाल उनका मिशन अगले तीन महीने तक उन लोगों के घरों में राशन पंहुचाना है जिनके यहाँ सूखे के कारण खाने के लिए कुछ भी नहीं है . यह सारा राशन मुफ्त में दिया जा रहा है . ललितपुर जिले के लोगों से बात हुयी तो पता चला कि वहां विकास की बहुत सारी योजनायें भी चल रही हैं . बाँध,नहर, तालाब आदि पर काम इस सरकार के आने के पहले से भी हो रहा है लेकिन फिलहाल प्राथमिकता लोगों को भूख से मरने से बचाना है और अखिलेश यादव की सरकार की हर घर में आटा ,दाल , चावल, नमक और तेल पंहुचाने की जो योजना है . वह साफ़ नज़र आती है . मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जब पूछा गया कि बुंदेलखंड पर इतना ज्यादा ध्यान क्यों दे रहे हैं , क्या इस इलाके से २०१७ और २०१९ में चुनावी लाभ लेने की मंशा है तो उन्होंने कहा कि इस वक़्त जो हालात हैं , उसमें चुनाव की बात का कोई मतलब नहीं है . लोगों को अगले तीन महीने तक भूख से बचाना उनकी प्राथमिकता है . चुनाव की बाद में देखी जायेगी . कोई भी नेता किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को चुनावी मुद्दा नहीं बनाता लेकिन साल भर के अन्दर होने वाले चुनावों पर इसका असर पड़ता ज़रूर है . बुंदेलखंड कांग्रेस , बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव क्षेत्र रहा है . लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी की तरफ से भी बड़ा काम किया जा रहा है . मुख्यमंत्री से बातचीत करते समय ऐसा लगा कि वे यहाँ पर मुख्य चुनौती बीजेपी की तरफ से मान रहे हैं . उनको जब बताया गया कि बेतवा नदी पर एरच बाँध तैयार है लेकिन उससे कोई फ़ायदा नहीं हो रहा है क्योंकि सिचाई विभाग पानी नहीं उपलब्ध करवा रहा है जबकि जल निगम वाले पानी के वितरण का इंतज़ाम नहीं कर रहे हैं . अखिलेश यादव इस सवाल से साफ़ निकल गए और केंद्र सरकार पर हमलावर हो गए. शायद उनको अंदाज़ लग गया था कि जल निगम और सिंचाई विभाग के बहाने उनकी पार्टी के कुछ नेताओं का विवाद खड़ा करने की कोशिश हो रही है और वे पार्टी के बड़े नेताओं के बारे में टिप्पणी करने से बचते रहे हैं . उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड का ललितपुर जिला तीन तरफ से मध्य प्रदेश के जिलों से घिरा हुआ है. वहां भी ऐसी ही स्थिति है , मध्यप्रदेश की सरकार क्यों कुछ नहीं कर रही सूखे का मुकाबला करने के लिए उत्तर प्रदेश की सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है . झांसी, बांदा, महोबा, चित्रकूट,जालौन, हमीरपुर और ललितपुर जिलों में फौरी तौर पर भूख के खिलाफ और दूरगामी नतीजों वाले बांधों. नहरों, पेयजल सुविधाओं आदि पर काम हो रहा है लेकिन इन्हीं जिलों के पड़ोसी मध्यप्रदेश में स्थित , पन्ना , दतिया, टीकमगढ़, सागर, दमोह और छतरपुर जिलों में कोई काम नहीं हो रहा है . ज़ाहिर है कि मुख्यमंत्री का यह हमला राजनीतिक है. ऐसा लगा कि वे बुंदेलखंड की स्थिति पर केंद्र सरकार को घेरना चाहते हैं . जब पूछा गया कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि केंद्र से आर्थिक सहायता भेजी जा रही है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार उसका सही इस्तेमाल नहीं कर रही है तो जवाब बिकुल राजनीतिक मिला. अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी खेल खेलने में उस्ताद है . बुन्देलखंड में समाजवादी पार्टी की सरकार दुर्भाग्यपूर्ण हालात से निपटने के लिए विकास का राठ माडल अपना रही है .जहां तक केंद्र सरकार की बात है , उसने राज्य सरकार को वह पैसा भी नहीं भेजा है जो उसका अधिकार है . अतिरिक्त धन की तो कोई बात हो ही नहीं रही है लेकिन उनकी सरकार अपने संसाधनों से ही काम करेगी और बुन्देलखंड में सूखे से परेशान लोगों को उबारने के लिए हर कोशिश की जायेगी
इस अवसर पर मीडिया के सहयोग से सरकार को घेरने की कोशिश को भी मुख्यमंत्री ने राजनीतिक स्वार्थ की बात बताई . घास की रोटी खाने की बात को मुद्दा बनाने की कोशिश भी की गयी. उन्होंने कहा कि जहां घास की रोटी खाने वाली कहानी ने जन्म लिया , वह गाँव इसी जिले में है और वे वहां जाकर सब खुद देखेगें . हालांकि घास की रोटी वाली राजनीतिक मुहीम की हवा पहले ही निकल चुकी है क्योंकि कई अखबारों में इस ब्लफ का जवाब मीडिया ने ही दे दिया है . घास देश के ग्रामीण इलाकों का एक पौष्टिक आहार है . और जो भी उत्तरप्रदेश को जानता है उसे मालूम है कि घास की रोटी उस घास की रोटी नहीं है जिसे जानवर खाते हैं . यह बात वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुकी है बुंदेलखंड के कई इलाकों में एक तरह की घास, फिकार की खेती की जाती है। इसका बाजार में बीज भी मिलता है। फिकार की खास बात ये है कि यह सालों तक रखे रहने के बाद भी खराब नहीं होता। इसमें घुन नहीं लगता है। इसका भात भी बनता है और रोटी भी . खेतों में फिकार के साथ ही पसई, कुटकी, कोदू, सवा,बथुआ, ग्वार की फली, पमरऊआ, चकुदिया और लठजीरा जैसी चीजें अपने आप उग आता है. और यह सब खाया जाता है . यह बकायद भोजन है .शहर के लोगों ने खाने की आदत में शामिल नहीं किया है, जबकि बुंदेलखंड के कई हिस्सों में इसकी खेती भी की जाती है। फिकार की जून में खेती होती है और यह भोजन है .
इस सारी जानकारी के अखबारों के ज़रिये पब्लिक डोमेन में आ जाने के बाद भी अखिलेश यादव ने उस गाँव का दौरा किया जहां घास की रोटी को मुद्दा बनाने की कोशिश की गयी थी. ऐसा लगा कि वे इस मुद्दे को भी विपक्ष को घेरने के काम में इस्तेमाल करने वाले हैं .बुंदेलखंड में उनकी सरकार की कोशिश की अगर व्याख्या की जाए तो तस्वीर साफ होने लगती है . इस इलाके से कांग्रेस, बीजेपी और बहुजन समाज पार्टी ने राजनीतिक लाभ लिया है लेकिन सरकार की कोशिश यह है कि वे यह बात साबित कर दें कि बीजेपी के असहयोग के बावजूद भी वे अपने हिस्से वाले बुंदेलखंड के लोगों के साथ खड़े हैं जबकि पड़ोस के मध्य प्रदेश वाले कुछ भी नहीं कर रहे हैं . मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार की कमी को केंद्र सरकार और राज्य बीजेपी को घेरने के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने की मुख्यमंत्री की कोशिश इस बात का साफ़ संकेत है कि २०१७ के चुनावों में वे बुंदेलखंड को मुख्य मुद्दों में शामिल करना चाहते हैं . बुंदेलखंड के अलावा राज्य के बाकी इलाकों में अखिलेश यादव बिजली सड़क और स्वास्थय सेवाओं को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं .राज्य के तीन दौरों में यह साफ़ नज़र आ रहा था कि बिजली सड़क पानी की स्थिति भी मौजूदा सरकार के पक्ष में जाता है इसलिए अभी उन विश्लेषकों को थोडा इंतज़ार करना पड़ेगा जिनके लेख और सर्वे उत्तर प्रदेश में भांति भांति के भविष्यवाणी कर रहे हैं .