Wednesday, September 14, 2011

प्रधान मंत्री ने कहा कि नक्सलवाद से प्रभावित जिलों में काम करने वालों को सुरक्षा की गारंटी देनी होगी

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,१३ सितंबर. नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की बैठक में प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि मुश्किल इलाकोंमें काम करने वालों को हर हाल में सुरक्षा दी जानी चाहिए . उन इलाकों में रहने वालों को नाक्साली हिंसा से बचाने के लिए हर कारगर उपाय किया जाना चाहिए. इसके पहले इसी वर्कशाप में गृह मंत्री ने नक्सल प्रभावित इलाकों में कानून व्यवस्था को पूरी तरह से राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी बताया और कहा कि केंद्र सरकार की भूमिका केवल राज्य सरकार की कोशिश में सहयोग करने तक ही सीमित है . लेकिन प्रधान मंत्री की बात उनसे अलग थी. लगता है कि प्रधान मंत्री ने गृह मंत्री की बात को सुधारने की कोशिश की . बहर हाल केंद्र सरकार के सर्वोच्च स्तर पर नक्सली हिंसा को हल करने के तरीकों में मतभेद सामने आ गए. प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना ( मनरेगा ) की मजदूरी लाभार्थी को सही तरीके से मिल सके. इसके लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में बैंको की शाखाओं की कमी को आड़े नहीं आने दिया जायेगा . उन्होंने सुझाव दिया कि बैंकों की शाखाओं को पुलिस तानों में खोला जा सकता है . नीचे की मंजिल पर थाना रहे और पहली मंजिल पर बैंक की ब्रांच खोल दी जाए. ऐसा करने से बैंकों की सुरक्षा के लिए अलग से व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी. लेकिन केवल सुरक्षा बलों के सहारे ही देश के सबसे पिछड़े इलाकों का विकास करने की कोशिश को प्रधान मंत्री ने सहे एनाहेने ठहर्या. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में रहने वाले लोग तथाकथित विकास की प्रक्रिया से बिलकुल अलग थलग पड़ गए हैं . उनको लगता है कि विकास का जो भी काम हो रहा है उसमें उनका कोई योगदान नहीं है. प्रधान मंत्री ने जोर देकर कहा कि जब तक नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को विकास के काम में भागीदार बनाने की ज़रुरत है .
प्रधान मंत्री ने कहा कि जब तक प्रशासन ज़मीनी सच्चाई से मुक़ाबिल नहीं होगा तब तक विकास की गाडी बेढंगी ही रहेगी. उन्होंने कहा कि पंचायती राज संस्थाओं के प्रभावी हस्तक्षेप के ज़रिये विकास के काम में लोगों की भागीदारी का एक मेकनिज्म तैयार किया जा सकता है . इसी सम्मलेन में सड़क और परिवहन मंत्री डॉ सी पी जोशी ने कहा कि आदिवासी इलाके के लोगों में सरकार के प्रति भरोसा नईं है . उसको ठीक किये बिना कोई भी काम नहीं हो सकेगा.जब तक लोग यह नहीं महसूस करेगें कि वे इलाके में हो रहे सारे काम में हिस्सेदार के रूप में शामिल हो रहे हैं तब तक उनका विश्वास नहीं हासिल किया जा सकता .. प्रधान मंत्री ने भी इस बात को सही बताया और कलेक्टरों से कहा कि आप का काम लोगों हर नए विकास कार्य में शामिल होने के लिए राजी करना है लेकिन जब तक आप सच्चे मन से कोई काम नहीं करेगें आपकी विश्वसनीयता कभी नहीं बनेगी.

दिनमें वर्कशाप में कुछ कलेक्टरों ने अपने जिले की बात भी रखी . उत्तर प्रदेश का केवल एक जिला, सोनभद्र नक्सल प्रभावित इलाका है . वहां के कलेक्टर विजय विश्वास पन्त ने भी अपने ज़िले की समस्याओं का ज़िक्र किया . बैठक में ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश दिन भर जमे रहे . उन्होंने ऐसे कुछ नियमों को बदल देने की दिशा में पहल की जिनकी वजह मनरेगा और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना के काम में बाधा आती है . प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में छोटे पुलों को भी शामिल करने के सुझाव को उन्होंने लगभग मंज़ूर कर लिया. और सुझाव दिया कि प्रेफैब पुलों क इस्तेमाल किया जाना चाहिए . मुकामी दादा टाइप ठेकेदारों से बचने के लिए ई टेंडरिंग की व्यवस्था में कुछ ढीले देने के सुझाव को भी उन्होंने विचार करने के लिए स्वीकार किया . ग्रामेने विकास मंत्री ने घोषित किया कि जंगल में पैदा होने वाली १२ जिन्सें अब केंद्र सरकार की सरकारी खरीद योजना में शामिल कर ली जायेगीं . जिसका लाभ आदिवासी इलाकों में रहने वाले लोगों को होगा

चिदंबरम बोले --नक्सलवादी हिंसा से लड़ने का काम राज्य सरकारों का है .

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली,१३ सितम्बर. गृह मंत्री पी चिदंबरम का दावा है कि देश की शान्ति और कानून व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा ख़तरा नक्सलवाद से है . कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में चल रहे आतंकवादी गतिविधियों में जितने लोग मारे जाते हैं , नक्सलवादी आतंकी उस से दस गुना ज्यादा लोगों की जान ले लेते हैं . नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों की एक सभा में गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के अन्य कारनामों के अंजाम देने वालों का सीमित लक्ष्य है . वे सरकार से कुछ सुविधाएं चाहते हैं . शासन की मौजूदा व्यवस्था में अपनी भागीदारी चाहते हैं लेकिन नक्सल आन्दोलन में लगे हुए लोग पूरी सरकार को ही हटा कर अपनी तानाशाही कायम करना चाहते हैं . उनके पास गुरिल्ला फौज है और वे एक विचार धारा को लागू करने के लिए आतंक का रास्ता अपना रहे हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस समस्या से जूझने में राज्य सरकारों की मदद कर सकती है लेकिन असली प्रयास तो राज्य सरकार की तरफ से ही किया जाना चाहिए . ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने गृह मंत्री से अनुरोध किया था कि नक्सल प्रभावित इलाकों में चाल रहे विकास कार्यों , खासकर प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए सी आर पी एफ की और अधिक सक्रिय भागी दारी को सुनिश्चित करें. गृह मंत्री ने कहा कि यह काम इतना आसान नहीं है .सी आर पी एफ को संतरी ड्यूटी के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता , वह एक फाइटिंग फ़ोर्स है . लेकिन गृहमंत्री ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क परियोजना में सी आर पी एफ की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सी आर पी एफ में एक ऐसी शाखा बनाई जा रही है जिसका मुख्य काम इंजीनियरिंग से सम्बंधित होगा.और उसका इस्तेमाल ग्राम सड़क परियोजना में किया जा सकता है लेकिन इस शाक्षा को काम लायक बनाने में कम स कम दो साल लगेया.

नक्सलवादी हिंसा को रोकने में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि उन लोगों से बात ही नहीं की जा सकती. वे संविधान को नहीं मानते . लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को जनविरोधी मानते हैं . इसलिए नक्सल हिंसा को काबू में करने के लिए वे तरीके कारगर नहीं होंगें जो आम तौर पर कानून व्यवस्था की समस्या को हल करने के लिए अपनाए जाते हैं .लेकिन सरकार को शान्ति तो कायम करनी ही है इसलिए ज़रूरी है कि नक्सलवादी हिंसा को रोकने के लिए उन इलाकों के लोगों को विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए जहां पर नक्सल वादी आतंकियों का प्रभाव है .
गृह मंत्री आज नई दिल्ली में आयोजित नक्सल आतंकवाद से प्रभावित ६० जिलों के कलेक्टरों की एक वर्कशाप में बोल रहे थे. उन्होंने आंकड़े देकर बताया कि इस साल के आठ महीनों में कश्मीर में २७ सिविलियन और पूर्वोत्तर भारत में ४६ सिविलियन मारे गए हैं जबकि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में १९७ सिविलियन मारे गए हैं.इसी तरह पूर्वोत्तर भारत में २७ सुरक्षा कर्मी मारे गए जबकि नक्सलियों ने १०९ सुरक्षा कर्मियों की ह्त्या की . लेकिन गृहमंत्री ने स्पष्ट कहा कि हर तरह की हिंसा का मुकाबला करना राज्य सरकारों का ज़िम्मा है . उन्होंने कलेक्टरों से कहा कि आप लोग अपनी सरकारों से उतनी बात नहीं करते जितनी कि केंद्र सरकार से उम्मीद करते हैं. राज्य में शान्ति और कानून व्यवस्था के काममें गृह मंत्रालय केवल मदद कर सकता है . लेकिन असली काम तो राज्य सरकारों को ही करना चाहिए

Tuesday, September 13, 2011

अब गाँव से दूर रहने वालों के लिए अलग होगा सीलिंग एक्ट

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली,१२ सितम्बर .केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री, जयराम रमेश एक नया धमाका कर रहे हैं . इस नए काम की धमक दूर तलक महसूस की जायेगी . पर्यावरण मंत्रालय में उन्होंने कुछ बहुत बड़ी कंपनियों को इतना टाईट कर दिया था कि सरकार के लिए उन्हें पर्यावरण मंत्री बनाए रखना असंभव हो गया. अपने नए मंत्रालय में भी वे कुछ बड़ा करने की योजना बना चुके हैं. जयराम रमेश ने एक योजना बनायी है जिसके बाद भूमि सुधार कानूनों में भारी फेरबदल कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार की योजना है कि राज्यों के भूमि हदबंदी कानून को बदल दिया जाए. हालांकि भूमि सुधार राज्य का विषय है लेकिन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के माडल भूमि हदबंदी कानून लाने की योजना बना रहा है जिसके अनुसार अपने गाँव से दूर शहरों में रहने वाले लोगों के लिए अलग भूमि हदबंदी कानून बनाया जाएगा . सरकार का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर भूस्वामी को गाँव में रहने वाले भूस्वामी से आधी ज़मीन रखने का अधिकार होगा . यानी अगर यह कानून उत्तर प्रदेश में लागू हो गया तो गाँव से बाहर शहरों में रहने वाले खातेदारों को सवा तीन एकड़ सिंचित भूमि ही रखने का अधिकार रह जाएगा. असिंचित के केस में भी यही फार्मूला लागू होगा .

जयराम रमेश का प्रस्ताव है कि गैर हाज़िर खातेदारों की सूची अब बहुत ही आसानी ने बन जायेगी .केंद्र सरकार की यू आई डी स्कीम वाले कार्ड के बन जाने के बाद देश के हर नागरिक का केवल एक परिचय पत्र रहेगा. वही कार्ड हर सरकारी स्कीम के लिए लागू होगा .जो लोग गाँव से दूर शहरों में रहते हैं ,उनको अपनी नौकरी के स्थान का ही कार्ड बनवाना पड़ेगा . इस तरह अभी तक दो या तीन जगह की मतदाता सूचियों में नाम लिखा कर काम चलाने वालों को एक जगह चुनना पड़ेगा जहां से वे कार्ड बनवाएं . ऐसी हालत में शहर में रह कर काम करने वालों के लिए गाँव का कार्ड नहीं बन पायेगा.

इस योजना की पूरी तैयारी हो चुकी है .ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में २००८ में ही भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् ( एन सी एल आर ) का गठन कर दिया था जो सक्रिय नहीं थी. अब वह सक्रिय कर दी गयी है . भूमि सुधारों की राष्ट्रीय परिषद् की पहली बैठक अक्टूबर में बुलाई जा रही है .इस परिषद् का उद्देश्य भूमि सुधार के बारे में दिशा निर्देश और नीतियाँ तय करना बताया गया है . भूमि सुधार के अधूरे काम को पूरा करने के लिए इस परिषद् के अंदर ही एक कमेटी बनायी गयी है जिसके अध्यक्ष ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश हैं.सरकार की कोशिश है कि भूमि के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक माडल भूमि सुधार कानून की आवश्यकता है . हालांकि राज्यों के सामने कोई बाध्यता नहीं होगी लेकिन केंद्र सरकार को उम्मीद है कि इंसाफ़ का निजाम स्थापित करने के एजेंडे के साथ राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टिया इस माडल भूमि हदबंदी कानून को लागू करेगीं.

नक्सल इलाकों में सी आर पी एफ के इंजीनियर सड़क बनायेगें

शेष नारायण सिंह

नई दिल्ली ,१२ सितम्बर. देश के ६० नक्सल प्रभावित जिलों के कलेक्टरों को १३ सितम्बर को नई दिल्ली में तलब किया गया है . उनको दिन भर चलने वाले एक वर्कशाप में ग्रामीण विकास की स्कीमों को प्रभावी तरीके से लागू करने के बारे में माकूल रणनीतियों की जानकारी दी जायेगी. इमकान है कि ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों में हो रही भारी लूट को रोकने की गरज से बुलाई गयी इस बैठक में कुछ नई योजनाओं पर भी चर्चा की जायेगी . सरकार की तरफ से संकेत दिया गया है कि सत्ता के सर्वोच्च स्तर पर बैठे लोगों को मालूम है कि इन ६० जिलों में सबसे ज्यादा लूट प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना के लिए दिए गए फंड में हो रही है . सरकार का प्रस्ताव है कि इस योजना में बनने वाली सडकों को अब कच्ची सड़क के रूप में विकसित करने पर रोक लगा दी जाए. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने संकेत दिया है कि नक्सल प्रभावित इन जिलों में सड़क बनने का काम सी आर पी एफ की इंजीनियरिंग शाखा को सौंप दिया जाए और उनको हिदायत दी जाए कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना की स्कीमो के अंतर्गत बनने वाली सड़कें अब कांक्रीट की बनायी जाएँ जिस से वे स्थायी रह सकें और उनको बारिश में कोई नुकसान न हो . अभी तक तो इस योजना की लगभग पूरी रक़म गाँव के नेता और अधिकारी हड़प कर लेते हैं . नक्सल इलाकों में यह रक़म नक्सली मुकामी ग्राम प्रधानों और अधिकारियों से छीन कर ले जाते हैं जिसका इस्तेमाल सरकार और जनता के खिलाफ ही किया जाता है .

६० जिलों के जिलाधिकारियों को बुलाकर उन के साथ अब तक हुए काम की समीक्षा तो की ही जायेगी . उनके सामने आ रही दिक्क़तों भी केंद्र और राज्य सरकारों के बड़े अधिकारियों और मंत्रियों की मौजूदगी में समझने की कोशिश की जायेगी . हर कलेक्टर को ८ मिनट का समय दिया जाये़या जिसमे वह अपनी समस्या को बताएगा. इस योजना में उत्तर प्रदेश का केवल सोनभद्र जिला शामिल है . जबकि आन्ध्र प्रदेश के २ जिले, बिहार के ७ , छत्तीस गढ़ के १० ,झारखण्ड के १४ , मध्य प्रदेश के ८, महाराष्ट्र के २ ,ओडिशा के १५ जिले और पश्चिम बंगाल का एक जिला है. इन ६० जिलों में ४२ जिले आदिवासी बहुल हैं.. विज्ञान भवन में आयोजित इस वर्कशाप में प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह मुख्य अतिथि होंगें जबकि गृहमंत्री पी चिदंबरम और ग्रामीण विकास मंत्री ,जयराम रमेश सक्रिय भागीदारी करेगें . इन विभागों के छोटे मंत्री भी कार्यक्रम में मौजूद रहेगें. इसके अलावा नौकरशाही भी बड़ी संख्या में हाज़िर रहेगी

Saturday, September 10, 2011

आडवाणी की नई रथयात्रा के निशाने पर अन्ना हजारे भी हैं और गडकरी भी

शेष नारायण सिंह

बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के पूर्व प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवाणी ने एक और रथयात्रा निकालने का ऐलान कर दिया है .इसके पहले आडवाणी जी राम जन्मभूमि रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा निकाल चुके हैं. आजकल खाली हैं क्योंकि लोकसभा में सारा फोकस विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज पर रहता है . हद तो तब हो गयी जब अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन्हें ८ सितमबर को भाषण देने से रोक दिया . जब आडवाणी जी नहीं माने तो अध्यक्ष ने आदेश दिया कि इनका बोला हुआ कुछ भी रिकार्ड नहीं किया जाएगा. उनके सामने लगा हुआ माइक भी लोकसभा के कर्मचारियों ने बंद करवा दिया . आडवाणी जी की वरिष्ठता का कोई भी नेता अभी तक के इतिहास में इस तरह के आचरण का दोषी नहीं पाया गया है . उनकी पार्टी के लोगों ने अध्यक्ष के आदेश का बुरा माना और संसद से बाहर निकल कर सड़क पर आ गए. वहीं संसद के परिसर में स्थापित की गयी महात्मा गाँधी की प्रतिमा के सामने खड़े होकरनारे लगाने लगे. लेकिन आडवाणी जी के ४० साल के संसदीय जीवन के इतिहास में एक अप्रिय प्रकरण तो बाकायदा जुड़ चुका था. . यह बात बीजेपी वालों को खल गयी . दोपहर बाद बीजेपी ने पलट वार किया और आडवाणी जी की प्रेस कानफरेंस बुला दी जहां आडवाणी जी ने ऐलान किया कि वे अब रथयात्रा निकालेगें .श्री आडवाणी जब भी रथयात्रा की घोषणा करते हैं ,आमतौर पर सरकारें दहल जाती हैं उनकी बहुचर्चित राम जन्म भूमि रथ यात्रा को बीते बीस साल हो गए है लेकिन उस यात्रा के रूट पर उसके बाद हुए दंगे आज भी लोगों को डरा देते हैं . देश हिल उठता . हालांकि उसके बाद भी आडवानी जी ने कई यात्राएं कीं लेकिन उन यात्राओं का वह प्रोफाइल नहीं बन सकता जो सोमनाथ से अयोध्या वाया मुंबई और कर्नाटक वाली यात्रा का बना था .राम जन्मभूमि रथ यात्रा के बाद आडवाणी जी ने जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा और भारत सुरक्षा यात्रा नाम की रथ यात्राएं कीं लेकिन वे यात्राएं कोई राजनीतिक असर डालने में नाकामयाब रहीं

लाल कृष्ण आडवाणी की इस यात्रा ने बहुत सारे राजनीतिक सवालों को सामने ला दिया . संसद भवन के एक कमरे में जब श्री आडवाणी अपनी रथ यात्रा की घोषणा की घोषणा कर रहे थे तो उनकी पार्टी के अध्यक्ष वहां मौजूद नहीं थे. आडवाणी जी ने बार बार इस बात का उल्लेख किया कि उन्होंने अपनी पार्टी के अध्यक्ष जी से पूछ कर ही इस यात्रा की घोषणा की है . उनकी बार बार की यह उक्ति पत्रकारों के दिमाग में तरह तरह के सवाल पैदा कर रही थी.उनके साथ मौजूद नेताओं पर नज़र डालें तो तस्वीर बहुत कुछ साफ़ हो जाती है . आडवाणी जी के दोनों तरफ सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, अनंत कुमार नज़र आ रहे थे . पार्टी के कुछ छोटे नेता भी थे . लेकिन आडवानी विरोधी गुटों का कोई भी नेता वहां नहीं था. राजनाथ सिंह नहीं थे , मुरली मनोहर जोशी नहीं थे या आडवाणी विरोधी किसी गुट का कोई नेता वहां नहीं था. ज़ाहिर है कि इस यात्रा से वे खतरे नहीं हैं जो उनकी १९९१ वाली यात्रा से थे .उस यात्रा में तो पूरी बीजेपी और पूरा आर एस एस साथ था .इसलिए संभावना है कि उनकी बाद वाली यात्राओं की तरह ही यह यात्रा भी रस्म अदायगी ही साबित होगी . लेकिन उनकी इस यात्रा से बीजेपी के अंदर चल रहे घमासान का अंदाज़ लग जाता है . आर एस एस ने इस बार साफ़ कर दिया है कि वह २०१४ के लोकसभा चुनावों के पहले किसी भी व्यक्ति को प्रधान मंत्री पद का दावेदार नहीं बनाएगा. नागपुर के फरमाबरदार बीजेपी अध्यक्ष ने भी बार बार कहा है कि इस बार उनकी पार्टी किसी को भी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनायेगी. इस फैसले का मतलब यह तो है कि अभी पार्टी और आर एस एस के आलाकमान ने यह तय नहीं किया है कि अगर २०१४ में सरकार बनाने का मौक़ा मिला तो सोचा जाएगा कि किसे प्रधानमंत्री बनाया जाय . यह तो सीधा अर्थ है . इस के अलावा भी इस घोषणा के कई अर्थ हैं . उन बहुत सारे अर्थों में एक यह भी है कि आर एस एस और बीजेपी लाल कृष्ण आडवाणी को १०१४ में प्रधानमंत्री पद के लिए विचार नहीं करेगें . यह बात खलने वाली है . सही बात यह है कि यह बात लोकसभा में आडवानी को बोलने देने वाले अपमान से जादा तकलीफ देह है . लेकिन आडवाणी भी हार मानने वाले नहीं हैं . उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर अपने आप को बीजेपी सबे महत्वपूर्ण चेहरा सिद्ध करने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया . प्रेस वार्ता में श्री आडवाणी ने बताया कि अभी कोई कोई तैयारी नहीं हुई है . यानी अभी यात्रा का नाम नहीं तय किया गया है .अभी उसका रूट नहीं तय किया गया है , अभी उसकी कोई शुरुआती रूपरेखा भी नहीं बनायी गयी है. बस केवल ऐलान किया जा रहा है . लगता है कि इस विषय पर किसी और यात्रा की घोषणा कहीं और से होने वाली थी . अपनी तरफ से यात्रा की घोषणा करके लाल कृष्ण आडवाणी ने अन्य किसी की पहल की संभावना को रोक दिया है .

दिलचस्प बात यह है कि आडवाणी ने यह यात्रा भ्रष्टाचार के खिलाफ निकालने की घोषणा की है लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या यह यात्रा रेड्डी बंधुओं के प्रभाव क्षेत्र बेल्लारी और नरेंद्र मोदी शासित गुजरात के अहमदाबाद से भी निकलेंगी तो आडवाणी जी ने कहा कि इस पर फैसला अभी नहीं किया गया है. इस बात को वे केवल सुझाव के रूप में लेने को तैयार थे. इसका भावार्थ यह हुआ कि वे राष्ट्रीय नेतृत्व में चल रहे घमासान के नतीजे को तो अपने पक्ष में कर लेना चाहते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी, और बेल्लारी वाले रेड्डी बंधुओं को नाराज़ करने की अभी उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही है . इस यात्रा से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए अन्ना हजारे के आयोजनों के स्वाभाविक नेता बनने की जो इच्छा आडवाणी जी मन में जागी है , वे उसे तुरंत भुना लेना चाहते हैं . ऐसा करने के कई फायदे हैं .. अन्ना हजारे ने जो माहौल बनाया है और भ्रष्टाचार विर्रोधियों की जो बड़ी जमात देश में खडी हो गयी है अब आडवाणी उसके स्वाभाविक नेता बन जायेगें . दूसरी बात बीजेपी में वे नितिन गडकरी को हमेशा के लिए हाशिये के सिपाही के रूप में फिक्स करने में सफल हो जायेगें . इस तरह से वह परम्परा भी बनी रहेगी कि आडवाणी जी की मर्जी के खिलाफ कोई भी बीजेपी नेता पार्टी का अध्यक्ष बन कर अपना अधिकार नहीं स्थापित कर सकता . राजनाथ सिंह .और मुरली मनोहर जोशी जैसे लोगों को आडवाणी जी ने नहीं जमने दिया था . नितिन गडकरी तो इन लोगों की तुलना में मामूली नेता है .

Friday, September 9, 2011

बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने फिर किया रथयात्रा का ऐलान .

शेष नारायण सिंह २००८ में लोक सभा में वोट के बदले नोट काण्ड में पकडे गए बीजेपी के सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर सिंह भगोरा को जेल भेजे जाने से नाराज़ बीजेपी ने रथ यात्रा का ऐलान कर दिया है . आज संसद भवन में आयोजित के पत्रकार वार्ता में बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि उनको फग्गन सिंह कुलस्ते, महावीर सिंह भगोरा और अशोक अर्गल के पैसे लेकर वोट देने की घटना की पूरी जानकारी थी . उन्होंने सरकार को आगाह किया कि उनकी पार्टी के सांसद वास्तव में भ्रष्टाचार की पोल खोलने का काम कर रहे थे . उन्हें अभियुक्त बनाना सरासर गलत है . श्री आडवाणी ने कहा कि अगर उनकी पार्टी के सांसदों को जेल भेजा गया है तो सरकार को चाहिए कि उन्हें भी जेल भेजे दे क्योंकि उन्हें पूरे काण्ड की जानकारी थी . इस मामले की जांच से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि श्री आडवाणी को भी उनके इस इक़बालिया बयान के लिए उसी धारा में बुक किया जा सकता है जिसमें उनके साथी जेल भेजे गए हैं . लेकिन आडवानी की गिरफ्तारी की किसी संभावना से अधिकारी इनकार कर रहे हिं क्योंकि उनका दावा है लाल कृष्ण आडवाणी उस काम में शामिल नहीं थे . पुलिस के पास ऐसे कोई सबूत नहीं है न. हालांकि उनके ख़ास सहायक सुधीन्द्र कुलकर्णी को उसी मामले में चार्ज शीट किया जा चुका है . वे दरअसल अपनी पार्टी के सदस्यों को नैतिक समर्थन देने के उद्देश्य से अपने शामिल होने की बात कर रहे हैं . आडवाणी की प्रस्तावित रथ यात्रा से केंद्र सरकार के आला अधिकारियों में चिंता नज़र आई . श्री आडवाणी ने बताया कि उनके नई रथ यात्रा भी उनकी पुरानी सोमनाथ से अयोध्या वाली यात्रा जैसी ही होगी.लेकिन इस बार मुद्दा भ्रष्टाचार, स्वच्छ राजनीति और जनतांत्रिक संस्थाओं की सुरक्षा होगा .उन्होंने कहा कि यात्रा के एजेंडे में विदेशों में जमा ब्लैकमनी को वापस लाने की बात भी करेगें . अपनी प्रेस वार्ता में श्री आडवाणी ने एक से अधिक बार कहा उनकी पार्टी के अध्यक्ष से इस सम्बन्ध में बात हो चुकी है . यह यात्रा नवम्बर के पहले ही की जा सकती है क्योंकि लोक सभा के शीतकालीन सत्र के पहले वे यह काम निपटा लेना चाहते हैं . जब उनसे पूछा गया कि क्या वे अपनी पार्टी के भ्रष्टाचार के केन्द्रों बेल्लारी और अहमदाबाद भी जायेगें तो उन्होंने सकुचा कर कहा कि इस बात को वे सुझाव की तरह मान रहे हैं और इस पर विचार किया जाएगा. जानकार बताते हैं कि इस यात्रा में शायद वह बीजेपी के भ्रष्टाचार के कारनामों को बचाना चाहें क्योंकि वे बेल्लारी और अहमदाबाद के बारे में दुविधा की बात करके कई तरह की शंकाओं को जन्म दे रहे हैं. लाल कृष्ण आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी यात्रा देश की राजनीति में हलचल लाने के लिए काफी इमानी जा रही है . अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन की वजह से देश में आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़बरदस्त माहौल है . ज़ाहिर है भ्रष्टाचार से ऊब चुकी जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी मुहिम को समर्थन दे सकती है .लेकिन कांग्रेसी सूत्र बताते हैं कि आडवाणी की यह यात्रा अन्ना हजारे के आन्दोलन को अपना लेने की है लेकिन अन्ना हजारे कभी भी अपने आन्दोलन को बीजेपी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए कुरबान नहीं करेगें . हालांकि बी जे पी वालों का भी मानना है कि इस यात्रा से लाल कृष्ण आडवाणी अपनी पार्टी में एक बार फिर सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित हो जायेगें अगर ऐसा हुआ तो नितिन गडकरी को निश्चित रूप से राजनीतिक नुकसान होगा क्योंकि जब तक श्री आडवाणी की रथ यात्रा चलेगी ,तब तक बीजेपी की मीडिया प्रबंधन की सारी मशीनरी उसी में लगी रहेगी. और गडकरी अखबारों की सुर्ख़ियों से उस दौर में हटने के लिए मजबूर हो जायेगे,.

Thursday, September 8, 2011

इस बार दिल्ली पुलिस को बलि का बकरा बनाने की कोशिश

शेष नारायण सिंह नई दिल्ली ,७ सितम्बर .दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नंबर ५ पर हुए धमाके ने राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं .धमाके के कारणों और अन्य बातों की जानकारे धीरे धीरे आये गी लेकिन एक बात लगभग पक्की है कि हाई कोर्ट पर हुआ धमाका सरकारी अलगरजी के कारण हुआ है .दिल्ली की सुरक्षा से सम्बंधित जिन लोगों से भी बात हुई ,सब का कहना है कि यह पूरी तरह से सरकारी असफलता का नमूना है .दिल्ली पुलिस को बलि का बकरा बनाने की तैयारी उसी वक़्त शुरू हो गयी जब गृहमंत्री ने लोकसभा में बयान दे दिया कि दिल्ली पुलिस को जुलाई में संभावित धमाके के बारे में बता दिया गया था . उसके बाद कई हलकों से यह खबर प्लांट करने की कोशिश की जा रही है कि हाई कोर्ट की पार्किंग में साढ़े तीन महीने हुए पहले धमाके के बाद दिल्ली पुलिस को सी सी टीवी और कैमरे लगाने को कहा गया था लेकिन उसने कोई परवाह नहीं की. दिल्ली पुलिस के एक ज़िम्मेदार सूत्र का दावा है कि दोनों ही बातें गलत हैं. लेकिन देश के गृहमंत्री के बयान को उनके अधीन काम करने वाला कोई भी अधिकारी ऐलानियाँ गलत नहीं बता सकता .ऐसा करने पर उसकी नौकरी जायेगी . लेकिन सच्चाई को बताने के लिए दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारियों ने नया तरीका निकाला है. सरकार ने दिल्ली पुलिस को जांच के दायरे से बाहर कर दिया है और एन आई ए को जांच का ज़िम्मा दे दिया है . पुलिस सूत्रों का कहना है कि गृह मंत्री पी चिदंबरम का लोकसभा में दिया गया बयान बिलकुल सही नहीं है . गृह मंत्री ने दिल्ली पुलिस को दी गयी जिस चेतावनी की बात लोकसभा में की वह केंद्रीय खुफिया विभाग, आई बी से हर महीने आने वाली एक रूटीन चेतावनी मात्र है . जिसमें कहा गया था कि दिल्ली पुलिस को बहुत चौकन्ना रहना पड़ेगा क्योंकि सितम्बर में महत्वपूर्ण ठिकानों पर आतंकी हमले हो सकते हैं . अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की चेतावनी अमरीका पर हुए ११ सितम्बर २००१ के हमलों के बाद हर साल आती है . आई बी ने हाई कोर्ट पर हमले के बारे में कोई विशेष आशंका नहीं जताई थी. सी सी टी वी और कैमरों की बात पर दिल्ली पुलिस का कहना है कि हाई कोर्ट के रजिस्टार जनरल ने पी डब्ल्यू डी विभाग को मई के विस्फोट के तुरंत बाद ही दिल्ली पुलिस के सुझाव पर सी सी टी वी कैमरे लगाने के लिए कह दिया था. जब कि पी डब्ल्यू डी वालों का कहना है कि हाई कोर्ट में सी सी टी वी कैमरे लगाने के लिए टेंडर के ज़रिये प्रक्रिया शुरू कर दी गयी थी. और एक हफ्ते के अंदर कैमरे लग जायेगें.उनके अनुसार वे नियमानुसार ही काम कर सकते हैं . उनके पास कोई भी सामान बाज़ार से जाकर खरीद कर लाने के पावर नहीं है . हाँ अगर सरकार किसी काम को अर्जेंट समझती है तो वह वह विशेष पावर दे सकती है . मिसाल के तौर पर कामनवेल्थ गेम्स में सभी सरकारी विभागों एक पास अर्जेंट आधार पर खरीद करने के पावर थे . अधिकारियों को शक़ है कि गृहमंत्री का बयान आई बी वालों ने तैयार करके उन्हें दे दिया था . वह बयान आई बी एके किसी अफसर का बयान लग रहा था , देश के गृहमंत्री का तो बिलकुल नहीं . गृहमंत्री ने कुछ देर बाद जो बयान दिए वे मामले की गंभीरता के अनुरूप थे. उन्होंने कहा कि जांच का काम अब दिल्ली पुलिस के पास नहीं है , अब आतंकवादी मामलो की जांच के लिए बनाए गए ख़ास संगठन एन आई ए को जांच का ज़िम्मा दे दिया गया है . लगभग तुरंत ही एन आई ए के निदेशक, एस सी सिन्हा ने बताया कि उन्होंने जांच के लिए विशेष टीम बना दी है जिसका कमांड डी आई जी रैंक का एक आई पी एस अफसर करेगा. इस काम में सब की मदद ली जायेगी. उधर दिल्ली पुलिस के मौजूदा कमिश्नर की नेतृत्व क्षमता पर तरह तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं दिल्ली में फैले अपराधतंत्र का वे कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहे हैं. अन्ना हजारे और राम देव के मामले में भी उनकी लीडरशिप को बहुत ही लचर पाया गया था . वैसे भी दिल्ली में आजकल की पुलिस व्यवस्था बहुत ही कमज़ोर है , अपराधी बेलगाम हैं . चारों तरफ से सवालों में घिर चुकी दिल्ली पुलिस के अफसरों के आफ द रिकार्ड बयान केंद्र सरकार को बहुत ही मुश्किल में डाल सकते हैं .इस बीच हरकत-उल-जिहाद नाम के एक संगठन ने धमाके की ज़िम्मेदारी ली है लेकिन उसकी मेल जो अखबारों के दफ्तरों में आई है वह उसकी विश्वसनीयता पर शंका पैदा करती है . एक तो इस नाम का कोई आतंकवादी संगठन अब तक नोटिस में पूरी दुनिया में कहीं नहीं आया. वैसे इसका नाम हरकत-उल-जिहादे इस्लामी से मिलता जुलता है लेकिन ई मेल भेजने वाले का बिलकुल अलग है . साइबर पुलिस उसके सर्वर की जांच कर रही है .अफसरों को शक़ है कि कहीं यह ई मेल जांच से ध्यान हटाने के लिए तो नहीं भेज दिया गया . बहरहाल एन आई के निदेशक ने कहा है कि इस ई मेल को बहुत ही गम्भीरता से लिया जा रहा है . जांच करते वक़्त आतंक के हर पहलू पर गौर किया जा रहा है .

Monday, September 5, 2011

मेरे बच्चे मुझसे अच्छे हैं

शेष नारायण सिंह मुझे जीवन में करीब पांच साल शिक्षक के रूप में काम करने का मौक़ा मिला. पहली बार १९७३ में जब मैं एक डिग्री कालेज में इतिहास मास्टर था . दो साल बाद निराश होकर वहां से भाग खड़ा हुआ . वहां बी ए के बच्चों को इतिहास पढ़ाया था मैंने . वे बच्चे मेरी ही उम्र के थे. कुछ उम्र के लिहाज़ से मेरे सीनियर भी रहे होंगें . लेकिन आज तक हर साल ५ सितम्बर के दिन वे बच्चे मुझे याद करते हैं . कुछ तो टेलीफोन भी कर देते हैं . दुबारा २००५ में फिर एक बार शिक्षक बना . इस बार पत्रकारिता पढाता था. तीन बैच के बच्चे मेरे विद्यार्थी हुए . यह दौर मेरे लिए बहुत उपयोगी था. पत्रकारिता का जो सैद्धांतिक पक्ष है उसके बारे में बहुत जानकारी मुझको मिली. अपनें विद्यार्थियों के साथ साथ मैं भी नई बातें सीखता रहा . तीन साल बाद नौकरी से अलग हो गया . शायद वहां मेरा काम पूरा हो चुका था . लेकिन इन वर्षों में मैंने जिन बच्चों को पढ़ाया उन पर मुझे गर्व है . समय की परेशानियों के चलते उन बच्चों को वैसी नौकरी नहीं मिली जैसी मिलनी चाहिए थी . लेकिन मुझे मालूम है कि वे अपने दौर के बेतरीन पत्रकार हैं .अगर उन्हें मौक़ा मिला तो वे अपने संगठन को बुलंदियों पर ले जायेगें. मेरी इच्छा है कि कुछ संगठन आगे आयें और उन बच्चों को मौक़ा दें , जो लोग मुझे अच्छा पत्रकार मानते हैं मैं उनसे अपील करता हूँ कि वे मेरे बच्चों पर नज़र डालें . वे सब मुझसे बेहतर पत्रकार हैं . आज बहुत से बच्चों नें मुझे याद किया है . मैं भी उन सबसे कहना चाहता हूँ मुझेभी तुम्हारी बहुत याद आती है मेरे बच्चो. देर हो रही है लेकिन तुम सब पत्रकारिता की बुलंदियों तक जाओगे. ठोकर खाकर कभी नहीं परेशान होना . मैं जानता हूँ कि तुम लोग हर हाल में बहुत ऊंचाई तक जाओगे.

अब पता चला कि मुंबई के राजपूत लीक से हटकर क्यों हैं

शेष नारायण सिंह मुंबई में इस बार मुझे एक बहुत ही अजीब बात समझ में आई. आमतौर पर अपनी बिरादरी की पक्षधरता से मैं बचता रहा हूँ. उत्तर प्रदेश में ज़मींदारी उन्मूलन के आस पास जन्मे राजपूत बच्चों ने अपने घरों के आस पास ऐसा कुछ नहीं देखा है जिस पर बहुत गर्व किया जा सके. अपने इतिहास में ही गौरव तलाश रही इस पीढी के लिए यह अजूबा ही रहा हाई कि राजपूतों पर शोषक होने का आरोप लगता रहा है . हालांकि शोषण राजपूत तालुकेदारों और राजओंने किया होगा लेकिन शोषक का तमगा सब पर थोप दिया जाता रहा है .. आम राजपूत तो अन्य जातियों के लोगों की तरह गरीब ही है . मैंने अपने बचपन में देखा है कि मेरे अपने गांव में राजपूत बच्चे भूख से तडपते थे.मेरे अपने घर में भी मेरे बचपन में भोजन की बहुत किल्लत रहती थी. इसलिए राजपूतों को एक वर्ग के रूप में शोषक मानना मेरी समझ में कभी नहीं आया. लेकिन सोशलिस्टिक पैटर्न आफ सोसाइटी और बाद में वामपंथी सोच के कारण कभी इस मुद्दे पर गौर नहीं किया . संकोच लगता था . मेरे बचपन में मेरे गाँव में राजपूतों के करीब १६ परिवार रहते थे .अब वही लोग अलग विलग होकर करीब ४० परिवारों में बँट गए हैं . मेरे परिवार के अलावा कोई भी ज़मींदार नहीं था . सब के पास बहुत मामूली ज़मीन थी. कई लोगों एक हिस्से में तो एक एकड़ से भी कम ज़मीन थी. तालाब और कुओं से सिचाई होती थी और किसी भी किसान के घर साल भर का खाना नहीं पूरा पड़ता था . पूस और माघ के महीने आम तौर पर भूख से तड़पने के महीने माने जाते थे. जिसके घर पूरा भी पड़ता था उसके यहाँ चने के साग और भात को मुख्य भोजन के रूप में स्वीकार कर लिया गया था. मेरे गांवमें कुछ लोग सरकारी नौकरी भी करते थे हालांकि अपने अपने महकमों में सबसे छोटे पद पर ही थे. रेलवे में एक स्टेशन मास्टर ,तहसील में एक लेखपाल और ग्राम सेवक और एक गाँव पंचायत के सेक्रेटरी . तीन चार परिवारों के लोग फौज में सिपाही थे . सरकार में बहुत मामूली नौकरी करने वाले इन लोगों के घर से भूखे सो जाने की बातें नहीं सुनी जाती थीं . बाकी लोग जो खेती पर ही निर्भर थे उनकी हालत खस्ता रहती थी . लेकिन जब हम बड़े हुए और डॉ लोहिया की समाजवादी सोच से प्रभावित हुए तो मेरी समझ में आया कि राजपूत तो शोषक होते हैं ,लेकिन जब मैं अपने गाँव के राजपूतों को देखता था तो मुझे लगता था कि मेरे गाँव के लोग भी तो राजपूत हैं लेकिन शोषक होना तो दूर की बात ,वे तो शोषण के शिकार थे. बाद में समझ में आया कि चुनावी राजनीति में कांग्रेस के एकाधिकार को खत्म करने के उद्देश्य से राजनीतिक बिरादरी ने कुछ ऐसी जातियां मार्क कर दी थीं जिनके खिलाफ पिछड़ी और दलित जातियों को संगठित किया जा सके. हालांकि उस काममें वे सफल नहीं हुए .सवर्ण जातियों को गरिया कर पिछड़ी जातियों के वोट तो हाथ आ गए लेकिन बाद में मायावती और कांशी राम के नेतृत्व में उन्हीं पिछड़ी जातियों के खिलाफ दलित जातियों ने मोर्चा खोला और आज उत्तर प्रदेश में सबसे ऊंची ब्राहमण जाति के लोग मायावती के साथ हैं जबकि राजपूत वोट बैंक के रूप में विकसित हो चुका है और उसे अपनी तरफ खींचने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां कोशिश कर रही हैं .आज राजपूतों के एक बहुत बड़े वर्ग के लोग गरीबी की रेखा के बहुत नीचे रह रहे हैं . हालांकि यह भी सच है कि इसी बिरादरी से आने वाले बहुत सारे लोगों ने उत्तर प्रदेश में राजनीति का सहारा लेकर अच्छी खासी ताक़त अर्जित कर ली है . लेकिन वे माइनारिटी में हैं .उत्तर प्रदेश के अवध इलाके में स्थित अपने गांव के हवाले से हमेशा बात को समझने की कोशिश करने वाले मुझ जैसे इंसान के लिए यह बात हमेशा पहेली बनी रही कि सबसे गरीब लोगों की जमात में खड़ा हुआ मेरे गाँव का राजपूत शोषक क्यों करार दिया जाता रहा है . मेरे गाँव के राजपूत परिवारों में कई ऐसे थे जो पड़ोस के गाँव के कुछ दलित परिवारों से पूस माघ में खाने का अनाज भी उधार लाते थे . लेकिन शोषक वही माने जाते थे. बाद में समझ में आया कि मेरे गाँव के राजपूतों के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण शिक्षा की उपेक्षा रही है . जिन घरों के लोग पढ़ लिख गए वे आराम से रहने लगे थे . वरना पिछड़ेपन का आलम तो यह है कि इस साल राज्य सरकार ने जब सफाईकर्मी भर्ती करने का फैसला किया तो मेरे गाँव के कुछ राजपूत लड़कों ने दरखास्त दिया था. जब गाँव से बाहर निकल कर देखा तो एक और बात नज़र आई कि हमारे इलाके में जिन परिवारों के लोग मुंबई में रहते थे उनके यहाँ सम्पन्नता थी. मेरे गाँव के भी एकाध लोग मुंबई में कमाने गए थे .वे भी काम तो मजूरी का ही करते थे लेकिन मनी आर्डर के सहारे घर के लोग दो जून की रोटी खाते थे . मेरे ननिहाल में लगभग सभी संपन्न राजपूतों के परिवार मुंबई की ही कमाई से आराम का जीवन बिताते थे.ननिहाल जौनपुर जिले में है. २००४ में जब मुझे मुंबई जाकर नौकारी करने का प्रस्ताव आया तो जौनपुर में पैदा हुई मेरी माँ ने खुशी जताई और कहा कि भइया चले जाओ , बम्बई लक्ष्मी का नइहर है . बात समझ में नहीं आई . जब मुंबई में आकर एक अधेड़ पत्रकार के रूप में अपने आपको संगठित करने की कोशिश शुरू की तो देखा कि यहाँ बहुत सारे सम्पन्न राजपूत रहते हैं . देश के सभी अरबपति ठाकुरों की लिस्ट बनायी जाय तो पता लगेगा कि सबसे ज्यादा संख्या मुंबई में ही है . दिलचस्प बात यह है कि इनमें ज्यादातर लोगों के गाँव तत्कालीन बनारस और गोरखपुर कमिश्नरियों में ही हैं .कभी इस मसले पर गौर नहीं किया था. इस बार की मुंबई यात्रा के दौरान कांदिवली के ठाकुर विलेज में एक कालेज के समारोह में जाने का मौक़ा मिला . वहां राष्ट्रीय राजपूत संघ के तत्वावधान में उन बच्चों के सामान में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिनको २०११ की परीक्षाओं में बहुत अच्छे नंबर मिले थे. बहुत बड़ी संख्या में ७० प्रतिशत से ज्यादा नंबर पाने वाले बच्चों की लाइन लगी हुई थी और राजपूत समाज के ही सफल,संपन्न और वारिष्ठ लोगों के हाथों बच्चों को सम्मानित किया जा रहा था. वहां जो भाषण दिए गए उसे सुनकर समझ में आया कि मामला क्या है . उस सभा में मुंबई में राजपूतों के सबसे आदरणीय और संपन्न लोग मौजूद थे.उस कार्यक्रम में जो भाषण दिए गए उनसे मेरी समझ में आया कि माजरा क्या है . मुम्बई में आने वाले शुरुआती राजपूतों ने देखा कि मुंबई में काम करने के अवसर खूब हैं . उन्होंने बिना किसी संकोच के हर वह काम शुरू कर दिया जिसमें मेहनत की अधिकतम कीमत मिल सकती थी. और मेहनत की इज्ज़त थी .शुरुआत में तबेले का काम करने वाले यह लोग अपने समाज के अगुवा साबित हुए. उन दिनों माहिम तक सिमटी मुंबई के लोगों को दूध पंहुचाने कम इन लोगों ने हाथ में ले लिया . जो भी गाँव जवार से आया सबको इसी काम में लगाते गए. आज उन्हीं शुरुआती उद्यमियों के वंशज मुंबई की सम्पन्नता में महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है . साठ और सत्तर के दशक में जो लोग मुंबई किसी मामूली नौकरी की तलाश में आये ,उन्होंने भी सही वक़्त पर अवसर को पकड़ा और अपनी दिशा में बुलंदियों की तरफ आगे चल पड़े,. आज शिक्षा का ज़माना है . प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने बारम्बार कहा है कि भारत को शिक्षा के एक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा. मुंबई के राजपूत नेताओं ने इस बयान के आतंरिक तत्व को पहचान लिया और आज उत्तर प्रदेश से आने वाले राजपूतों ने शिक्षा के काम में अपनी उद्यमिता को केन्द्रित कर रखा है .उत्तरी मुंबई में कांदिवली के ठाकुर ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशनस की गिनती भारत के शीर्ष समूहों में होती है . इसके अलावा भी बहुत सारे ऐसे राजपूत नेताओं को मैं जानता हूँ जिन्होंने शिक्षा को अपने उद्योग के केंद्र में रखने का फैसला कर लिया है . लगता है कि अब यह लोग शिक्षा के माध्यम से उद्यम के क्षेत्र में भी सफलता हासिल करेगें और आने वाली पीढ़ियों को भी आगे ले जायेगें .बहरहाल मेरे लिए यह यात्रा बहुत शिक्षाप्रद रही क्योंकि भारतीय सामाजिक जीवन के एक अहम पहलू पर बिना किसी अपराधबोध के दौर से गुजरे हुए मैंने एक सच्चाई लिख मारी .

Saturday, September 3, 2011

अन्ना की टीम के किसी बन्दे को भ्रष्ट कहने वाले अच्छे लोग नहीं हैं .

शेष नारायण सिंह नई दिल्ली,२ सितम्बर.अन्ना हजारे की टीम के ख़ास सदस्यों को घेरने की केंद्र सरकार की नीति को आज अरविंद केजरीवाल ने आड़े हाथों लिया .उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे के आन्दोलन की धार को कमज़ोर करने के लिए कांग्रेस पार्टी के हुकुम के बाद उनके पुराने विभाग़ ने सक्रियता दिखाई है . उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अन्ना हजारे की कोर टीम को दौंदियाने की कोशिश कर रही है . उनका दावा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मैदान ले चुकी इस देश की जनता सरकार की इस कोस्शिश को कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी. अरविंद केजरीवाल आज प्रेस से मुखातिब थे . उनके साथ उनके ख़ास साथी प्रशांत भूषण और किरण बेदी भी मौजूद थे. उधर सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि उनकी टीम के दिल्ली के सदस्यों के दागदार साबित होने के बाद अन्ना हजारे इन लोगों को अपने साथ नहीं रखेगें. सरकार को भरोसा है कि अन्ना की छवि बिलकुल साफ़ है और वे जब भी उनके साथी दागदार पाए जाते हैं , वे उन्हें अपनी टीम से ड्राप कर देते हैं . ऐसा वे महाराष्ट्र में चलाए गए अपने हर आन्दोलन के बाद कर चुके हैं . केंद्र सरकार ने अरविंद केजरीवाल को घेरने की कवायद शुरू कर दी है . जब वे इनकम टैक्स विभाग में अफसर थे ,उस समय की कुछ गड़बड़ियों को कल सरकार की तरफ से मीडिया के फोकस में लाया गया था. केजरीवाल ने आज केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि जिस नोटिस को आज हर अखबार ने प्रमुखता से छापा है वह सरकार की उस योजना का नमूना है जिसके तहत वह अन्ना हजारे की टीम के ख़ास लोगों शक़ के दायरे में लेने की कोशिश कर रही है . उन्होंने कहा कि उनके ऊपर जो ९ लाख रूपये की गड़बड़ी का आरोप लगाया गया है वह बेबुनियाद है . अरविंद केजरीवाल की बात पर कोई भी सरकारी अधिकारी बयान देने को तैयार नहीं है लेकिन खुसुर पुसुर अभियान पूरी तरह से चल रहा है . इसके पहले प्रशांत भूषण के पिता शान्ति भूषण की सी डी के मामले को भी प्रेस को लीक कर दिया गया था . उस सी डी को अमर सिंह ने प्रशांत भूषण और शान्ति भूषण को भ्रष्ट साबित करने के लिए अदालत में पेश किया था . दिल्ली पुलिस अन्ना हजारे के अनशन के ख़त्म होने के बाद उस सी डी के बारे में दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दिया .. यानी पुलिस मानती है कि उस मामले को साबित करने के बारे वह गंभीर नहीं है लेकिन उस सी डी के असली होने की बात को पब्लिक कर दी गयी . सच्चाई यह है कि सी डी को जिसने सुना है उसके मन में शान्ति भूषण और प्रशांत भूषण के बारे में शक़ होना स्वाभाविक है क्योंकि मुलायम सिंह यादव से जो बातचीत उसमें सुनायी पड़ रही है वह पूरी तरह से स्पष्ट है और शान्ति भूषण प्रशांत की उस क्षमता का ज़िक्र कर रहे हैं जिसके अनुसार वे जजों को मैनेज कर सकते हैं . . इस सी डी का मकसद भी अन्ना की टीम के दो ताक़तवर लोगों को धूमिल करने की कोशिश ही नज़र आती है . आज दिल्ली विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी से बात करने पर पता लगा कि सरकार अन्ना की टीम की एक अन्य सदस्य किरण बेदी की एन जी ओ जुडी कुछ बातों को पब्लिक डोमेन में डालने की बात कर रही है . डी डी ए में चर्चा है कि किरण बेदी ने अपने एन जी ओ के लिए कुछ मकान अनाधिकृत तरीके से लेने की कोशिश की थी. इसका मतलब यह हुआ कि किरण बेदी को भी शक़ के दायरे में लाने की कोशिश शुरू हो गयी है . किरण बेदी की ख्याति बहुत ही ईमानदार अफसर की रही है लेकिन सरकार उनको भी घेरने की कोशिश कर रही है . जब सरकार की हताशा के ज़िक्र सत्तापक्ष के एक बड़े नेता से किया गया तो उनका कहना था कि इन आरोपों के बाद अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण की छवि निश्चित रूप से धूमिल होगी और जो लोग अन्ना हजारे को जानते हैं उनका दावा है कि अपने साथ किसी भी दागदार आदमी को कभी न रखने वाले अन्ना हजारे अपनी टीम में फेरबदल भी कर सकते हैं .

अन्ना हजारे को सबसे बड़ा ब्रैंड बनाने वाले पत्रकार थे या कोई और ?



शेष नारायण सिंह


अपना अनशन समाप्त करने के बाद गुडगाँव के एक अस्पताल में २-३ दिन तक स्वास्थ्य लाभ करके अन्ना हजारे वापस अपने गाँव चले गए. यह खबर आज देश के हिन्दी के सबसे बड़े अखबार में पहले पेज पर छपी है .खबर गुडगाँव के संवाददाता की है और ,एक कालम की यह खबर करीब १०० शब्दों में निपटा दी गयी है . देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार में भी यह खबर पहले पेज पर संक्षिप्त छापी गयी है .यानी अब प्रिंट मीडिया को अन्ना हजारे और उनकी राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं बची है . लेकिन टेलिविज़न मीडिया ने कल शाम को जब अन्ना हजारे अस्पताल से निकले तो उस विदाई को मीडिया इवेंट बनाने की पूरी कोशिश की . कुछ चैनलों पर अन्ना हजारे की अस्पताल से विदाई की खबरों को देखने का मौका मुझे भी मिला. हेडलाइन थी कि अन्ना हजारे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है . एक कार में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ कर अन्ना हजारे को जाते हुए दिखाया गया था. वही सफ़ेद गांधी टोपी, वही सफ़ेद कुरता और वही सौम्य मुस्कान . . करीब ३ सेकण्ड का यह शाट बार बार दिखाया गया . साथ में न्यूज़ रीडर की आवाज़ भी कानों में पंहुच रही थी कि अन्ना हजारे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है . उसी शाट को करीब २५ मिनट तक लगातार दिखाया गया और एक ही वाक्य को न्यूज़रीडर तरह तरह से बोलता रहा. कभी कहता कि अन्ना हजारे को असपताल से छुट्टी दे दी गयी है . और वे कहीं जा रहे हैं . . फिर कहता कि हम आपको इस बारे में पल पल की जानकारी दे रहे हैं . अब हम गुडगाँव से चलते हैं जहां हमारे संवाद दाता मिस्टर अमुक लाइव जुड़ रहे हैं . और अब वे पल पल की जानकारी देंगें . लाइव संवाददाता भी वही वाक्य कुछ फेर बदल करके सुनाते और कहते कि अभी पता नहीं है कि अन्ना को कहाँ ले जाया जा रहा है . यह भी नहीं पता कि उनके साथ कौन कौन हैं . यह भी नहीं पता कि वे कहाँ जा रहे हैं . यानी करीब ७ वाक्य ऐसे होते थे कि लाइव संवाद दाता को पता ही नहीं कि खबर क्या है लेकिन टेलिविज़न पर हैं तो कुछ न कुछ तो बोलते ही रहना है लिहाजा कुछ ऐसे वाक्य बोलते रहे जिन वाक्यों को न्यूज़ रीडर और लाइव संवाददाता ने मिलकर २५ मिनटों में सैकड़ों बार बोला होगा. बार बार लगता था कि बीच में यह न्यूज़ रीडर थोडा समय निकाल कर उन खबरों के बारे में भी बता देगा जिससे देश को पता चलता कि उत्तर भारत के बहुत सारे इलाकों में भारी बाढ़ आई हुई है . कुछ इलाकों में लोग पेड़ों पर रह रहे हैं , कुछ इलाकों में लोग बाढ़ की वजह से पूरी तरह से अलग थलग पड़ गए हैं और भूख से तड़प रहे हैं . लेकिन ऐसा कहीं होता नहीं दिखा . शाम को भी कुछ चैनलों को देखने का मौक़ा मिला . वहां भी कुछ ऐसी बहसें चल रही थीं जिनको देख कर लगता ही नहीं था कि असली भारत किन मुसीबतों से जूझ रहा है. राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी और अफज़ल गुरु की फांसी की राजनीतिक विवेचना भी कुछ चैनलों पर नज़र आई. लेकिन इन खबरों को आज अखबारों ने वह इज्ज़त नहीं दी है जो रुतबा इन का कल के टी वी चैनलों पर देखने को मिला .


ज़ाहिर है कि भारतीय मीडिया की प्राथमिकताएं खबर की औकात से नहीं किसी अन्य कारण से तय होती हैं . कुछ कठोर आलोचक टी वी न्यूज़ की प्राथमिकता को तय करने का पैमाना टी आर पी को बता कर टी वी चैनलों को बहुत ही स्वार्थी संगठन के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं . उस तर्क से तो टी वी चैनल इंसान की कमजोरी का बौद्धिक शोषण करने वाले संगठन के रूप में मान लिए जायेगें . आम तौर पर इंसान की यह कमजोरी होती है कि वह अपने बारे में खबर देख कर बहुत खुश होता है .हालांकि कई ज्ञानी टी वी संपादक इस बात को सेमिनारों आदि में इस बात को खुद स्वीकार करते पाए जाते हैं लेकिन उन्हें शायद मालूम ही नहीं है कि वे क्या स्वीकार कर रहे हैं . टी आर पी के दबाव में खबरों को प्रस्तुत करने की बात को कुछ हद तक तो स्वीकार किया जा सकता है लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है .भारत में टेलिविज़न की बहुत सारी खबरों ने इतिहास रचा है . उन सबको यहाँ दुहराना समीचीन नहीं होगा लेकिन समकालीन भारत के राजनीतिक इतिहास में कुछ ऐसी खबरें ज़रूर हैं जिनके कारण बहुत बड़े बड़े घोटाले पब्लिक डोमेन में आये. कामनवेल्थ खेलों के घोटाले, २ जी स्पेट्रम के घोटाले आदि ऐसे उदाहरण हैं जिनको फोकस में लाने में टेलिविज़न चैनलों का भारी योगदान है . बंगारू लक्ष्मण नाम के नेता को नोटों के बण्डल संभालते दिखाकर टेलिविज़न ने भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग में एक संगमील स्थापित किया था . लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है इस तरह की खबरें उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं . कामनवेल्थ खेल और २ जी वाला घोटाला तो देश के राजनीतिक विकास में भारी योगदान कर रहा है . कांग्रेस को एक भ्रष्ट पार्टी के रूप में चिन्हित करने में इन खबरों का बहुत बड़ा योगदान है . लेकिन जब टेलिविज़न एक व्यक्ति के अनशन को राष्ट्रीय एजेंडा पर लाने की कोशिश करता है तो बात अजीब लगती है . टेलिविज़न की कृपा से ही ब्रैंड अन्ना अगस्त के दूसरे पखवाड़े के समय काल में १० दिनों का विज्ञापन की दुनिया का सबसे बड़ा भारतीय ब्रैंड बन सका . विज्ञापन की दुनिया से जुड़े लोगों का कहना है किसी एक आदमी को १५ दिन के अंदर देश का टाप ब्रैंड बनाना कोई मामूली सफलता नहीं है . उसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर प्लानिंग की ज़रूरत होती है . देश के आम आदमी को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि किसी को ब्रैंड बनाने के लिए कितनी प्लानिंग की गयी और कितनी नहीं की गयी. लेकिन उसे इस बात से ज़रूर मतलब है कि वह टेलिविज़न पर ऐसी ख़बरों को देखे जिस से उसकी जानकारी बढे. यहाँ कम्युनिकेशन थियरी के महान विद्वानों मार्शल मैक्लुहान और रेमंड विलियम्स के विचारों का हवाला देकर कोई प्वाइंट स्कोर करने की मंशा नहीं है लेकिन आम आदमी की उस जिज्ञासा को ज़रूर रेखांकित किया जाना चाहिए कि वह उन खबरों को ही देखे जो उसकी जानकारी में वृद्धि करें. अगर जानकारी में वृद्धि करने के बाद कोई खबर बार बार श्रोता के सर पर हथौड़े की तरह काम कर रही है तो उसे विज्ञापन कहा जायेगा. यहाँ इस बहस में भी जाने की ज़रुरत नहीं है कि पंद्रह दिनों तक टेलिविज़न पर अन्ना हजारे की जो ब्रैंड बिल्डिंग की गयी उसका उद्देश्य क्या था और उस उद्देश्य को हासिल करने के लिए टेलिविज़न टाइम कौन मुहैया करवा रहा था लेकिन यह बात सच है कि समाचार की जितनी भी परिभाषाएं अब तक जानकारी में आई हैं उनके अनुसार १५ दिन तक टेलिविज़न पर चला अन्ना हजारे का अभियान किसी भी सूरत में खबर की श्रेणी में नहीं आता . हाँ अगर यह मान लिया जाय कि वह ब्रैंड बिल्डिंग का एक आयोजन था तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. आज के अखबारों में छपी अन्ना हजारे से सम्बंधित ख़बरों को जो मामूली ट्रीटमेंट हुआ है उसे देख कर समझ में आ जाता है कि पत्रकार बिरादरी तो अन्ना हजारे वाली ख़बरों को सही समझ रही थी लेकिन जो नज़र आ रहा था वह पत्रकारों के कारण नहीं नज़र आ रहा था. बार बार सवाल उठता है कि कहीं वह ब्रैंड मैनेजरों का काम तो नहीं था.

Friday, September 2, 2011

ताकि सड़क पर कोई मासूम घायल न हो


शेष नारायण सिंह

नोयडा,१ सितम्बर . शहर में बढ़ रहे वाहनों और बेलगाम ड्राइवरों से घबडा कर शहर में सडक दुर्घटना रोकने का एक नागरिक प्रयास चल रहा है .' राही ' नाम की एक स्वयंसेवी संस्था ने सड़क दुर्घटना रोकने को संस्थागत रूप देने की दिशा में एक अहम क़दम उठाया है . संगठन की कोशिश है कि आने वाले कुछ महीनों में नोयडा में एक ऐसे संस्थान की स्थापना की जाए जहां सड़क दुर्घटना को रोकने के तरीकों पर तरह तरह के आयोजन किये जायेगें. फिलहाल अभी शहर में छठवीं, सातवीं और आठवीं के बच्चों को सड़क दुर्घटना रोकने और उस से बचने के लिए जनजागरण की योजना को बहुत ही मामूली स्तर पर चलाया जा रहा है .

' राही ' की निगरानी में रोड एक्सीडेंट प्रिवेंशन इंस्टीटयूट शुरू करने की योजना क अंतिम रूप दिया जा चुका है , जहां सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने की कोशिश को बहुत ही गंभीर सामाजिक और मेडिकल समस्या के रूप में उठाया जाएगा . शहर के तीन डाक्टरों , श्रीमती ( डॉ) गुंजन धारी ,डॉ वी पी सिंह और डॉ इब्राहीम ने मिलकर शुरुआती योजना २००४ में बनायी थी . आर्थिक उदारीकरण के बाद शहर में वाहनों की संख्या में हो रही बेलगाम वृद्धि और उसकी वजह से हो रही दुर्घटनाओं से यह लोग विचलित थे . वाहनों की संख्या या ड्राइवरों के आचरण पर काबू पाना तो बहुत ही कठिन काम है . इन लोगों ने सोचा कि सड़क को दुर्घटनामुक्त करने की कोशिश की जाए. उसी संकल्प के नतीजे के रूप में इस संगठन ने जन्म लिया .सड़क दुर्घटना के शिकार होने वालों में सबसे ज्यादा संख्या में बच्चों की होती है . इस लिए अभी कम उम्र के बच्चों को की टार्गेट किया गया है . दिल्ली और आस पास के शहरों में बहुत तेज़ कार चलाने वालों में बहुत बड़ी तादाद १८ से २५ साल के नौजवानों की होती है . ' राही ' की कोशिश है कि जब १० से १४ साल के बच्चे कार चलाने की उम्र में पंहुचें तो वे सड़क हादसों की भयावहता से पूरी तरह से परिचित हों. मकसद साफ़ है . वे चाहते हैं कि सड़क पर बच्चे न तो मरें, न ही अपाहिज हों और न ही घायल हों . अगर दुर्घटना हो ही गयी तो हादसे के शिकार लोगों की समुचित चिकत्सा हो सके .


सड़क पर बच्चों की सुरक्षा के बारे में उनके माता पिता को भी जागृत किया जायेगा. इस काम में लीफलेट, पोस्टर आदि के ज़रिये जनजागरण की योजना पर काम हो रहा है. अभी इन डाक्टरों ने किसी से कुछ भी आर्थिक सहायता नहीं ली है . अपने १०० मित्रों और रिश्तेदारों की एक लिस्ट बना रखी है जिनसे हर महीने ११०० रूपये लिया जाता है . उसी धनराशि से शुरुआती काम चल रहा है . एक बातचीत में राही की संस्थापक ,डॉ गुंजन ने बताया कि काम फैला तो समाज के अन्य वर्गों को इस प्रयास में शामिल किया जायेगा.इनकी कोशिश है कि साल के अंत तक इस अभियान के बारे में पूरी तरह से जागरूकता का प्रचार कर दिया जाए. इस काम के लिए इच्छुक नागरिकों की एक फ़ोर्स तैयार करने की भी योजना है . . हर इलाके में ' राही ' के प्रयास से मंडलियाँ बनायी जा रही है जो अपने स्तर पर सड़क से हादसे को दूर रखने के लिए प्रयास कर रही हैं . संगठन की कोशिश है कि आने वाले वर्षों में उन संगठनों का एक सम्मलेन बुलाया जाय जो सड़क दुर्घटना के खतरों को कम करने के लिए प्रयास कर रहे हैं .